यूपी के लिए “योगी” उपयोगी, बीजेपी सरकार ने दोबारा बड़ी जीत दर्ज की…

तीन दशक से अधिक समय बीत गया, उत्तर प्रदेश के लिए यह मिथक बनता जा रहा था कि यहां कोई पार्टी लगातार दो बार सरकार नहीं बना पाती और नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की सरकार चली जाती है। मसलन, बीते तीन विधानसभा चुनावों में हुए उलटफेर ने इस मिथक को और मजबूत किया। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का तख्त 2012 में सपा ने पलटा तो सपा की बहुमत वाली सरकार 2017 की मोदी लहर में ढेर हो गई।

इस बीच विकासवाद की राजनीति के प्रतीक बनकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर उभरे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जनसभा में ‘यूपी के लिए योगी ही उपयोगी’ जैसा नारा देकर योगी के प्रति बढ़े जनविश्वास पर अपनी मुहर लगा दी।

न किसान नाराज और न कोरोना का असर। केंद्र सरकार द्वारा जो तीन कृषि कानून लागू किए गए, उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में माहौल बनाने का भरसक प्रयास हुआ। हालांकि, चुनाव से ऐन पहले सरकार ने उन कानूनों को वापस भी ले लिया, लेकिन विपक्ष आश्वस्त था कि किसानों की नाराजगी भाजपा पर भारी पड़ेगी। इसी उम्मीद के साथ सपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़त के लिए किसानों की राजनीति का दावा करने वाले राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन किया। पिछले चुनाव में एकमात्र छपरौली सीट जीतने वाले रालोद को अखिलेश ने गठबंधन में 33 सीटों पर चुनाव लड़ाया। मगर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नतीजे बता रहे हैं कि आंदोलन का असर मात्र एक बिरादरी तक सिमटा रह गया। किसान हित की मोदी-योगी सरकार की योजनाओं की काट विपक्षी रणनीति नहीं निकाल पाई। किसानों ने भाजपा को भरपूर वोट दिया। बेसहारा पशुओं की समस्या जरूर थी, लेकिन गोवंश संरक्षण के प्रति सीएम योगी की नीयत-कवायद और दोबारा सरकार बनने पर इस समस्या से संपूर्ण निदान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आश्वासन ने इस मुद्दे को भी बेअसर कर दिया। विभिन्न कारणों से बढ़ी महंगाई को विरोधी दल हथियार बनाना चाहते थे, लेकिन मुफ्त राशन, किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का असर उससे अधिक रहा।

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