कानपुर– अप्रैल 2021 में दम तोड़ चुके विमलेश की बैंक मैनेजर पत्नी मिताली दीक्षित आज तक सेवा कर रही थी। पूरा घर सेवा करता था तखत पर पड़े शव को रोज गंगाजल मिले पानी से पोंछती थी। कपड़े बदलती थी। बच्चे शव से लिपट कर भगवान से प्रार्थना करते थे कि उनके पापा को अच्छा कर दें। माता-पिता और भाई शव को ऑक्सीजन देते थे और पूरा कुनबा इंतजार कर रहा था कि एक दिन विमलेश उठ खड़े होंगे।
17 महीने से विमलेश के शव के साथ उसके पिता रामऔतार, मां रामदुलारी, पत्नी मिताली दीक्षित, बेटा सम्भव (4) और बेटी दृष्टि (18 माह), भाई सुनील और दिनेश और उनकी पत्नियां रह रही थीं। इन सबको विश्वास था कि विमलेश जिंदा है, बस कोमा में चला गया है। एक दिन वह ठीक होकर उठ खड़ा होगा। कोऑपरेटिव बैंक की मैनेजर मिताली रोज बैंक जाने से पहले शव का माथा छूकर उसे बताती थी। सिरहाने बैठकर उसे निहारती थी। उसके सिर पर हाथ फेरती थी और उसे बोलकर जाती थी कि जल्दी ही ऑफिस से लौटकर मिलती हूं। वह कुछ खा-पी नहीं रहा है, घरवाले इसे भी अनदेखा कर रहे थे। मान रहे थे कि उसकी धड़कन चल रही है। बच्चे शरीर के पास खेलते थे। उसे छूते थे। माता-पिता भी देखभाल करते थे। बेटा रोज तोतली जुबान से भगवान के आगे हाथ जोड़ कर ‘बीमार’ पिता के जल्दी ठीक होने की प्रार्थना करता था। भाई जब अपने काम से लौटते थे तो आकर विमलेश से उसका हालचाल पूछते थे। विमलेश की खामोशी के बावजूद वे उसे जीवित मानते रहे।
डॉक्टर इसे अपने आप में दुर्लभ केस बता रहे मनोरोग इस कदर हावी था कि उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि 17 महीने तक बिना कुछ खाए-पीये कोई कैसे जिंदा रह सकता है। डॉक्टर इसे अपने आप में दुर्लभ केस बता रहे हैं। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि यह विचित्र केस है। मोहल्ले के लोग बताते हैं कि इस परिवार की दिनचर्या में किसी तरह की असामान्यता नहीं दिखाई दी, सिवाय इसके कि ये लोग समाज से पूरी तरह कटे हैं।
बिना केमिकल के शव को संरक्षित नहीं रख सकते
17 महीने पहले मौत के बाद विमलेश का शव संरक्षित रहा। लेकिन दुनिया में बिना केमिकल्स के किसी भी शव को महीनों संरक्षित रहने का कोई रिकार्ड नहीं है। परिजन भले ही दावा करें कि विमलेश के शरीर पर इस तरह का कोई केमिकल इस्तेमाल नहीं किया गया है पर यह विशेषज्ञों की समझ से परे हैं।