खड़गे के सिर सजा कांग्रेस का ताज, जानें कौन हैं कांग्रेस के नए बॉस मल्लिकार्जुन खड़गे?

पूर्व केंद्रीय मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। पार्टी को पूरे 24 साल बाद गैर गांधी और 51 साल बाद दलित अध्यक्ष मिला है। कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे को जहां 7897 वोट मिले, वहीं शशि थरूर को करीब 1000 वोट मिले. इस तरह खड़गे ने करीब 8 गुना ज्यादा वोट से थरूर को हरा दिया. मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले दूसरे दलित नेता हो गए हैं. इससे पहले 1971 में जगजीवन राम के कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. खड़गे का नाता भले ही दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक से है, मगर वह अच्छी हिंदी बोल लेते हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे लगातार नौ बार विधायक रह चुके हैं. इतना ही नहीं, जब साल 2014 के चुनाव में मोदी लहर में दिग्गज हार रहे थे, तब भी खड़गे ने जीत का परचम लहराया था. हालांक‍ि वह 2019 में वह लोकसभा चुनाव हार गए थे

मल्लिकार्जुन खड़गे ने 7 साल की उम्र में अपनी मां और परिवार के कुछ सदस्यों को खो दिया था. उन्हें सांप्रदायिक तनाव की वजह से अपने जन्मस्थान को छोड़कर बगल के जिले कलबुर्गी जिसे पहले गुलबर्ग कहा जाता था शिफ्ट होना पड़ा था. उन्होंने पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए सिनेमा थियेटर में नौकरी भी की थी. पिछले 12 चुनावों में वह 11 बार जीत चुके हैं. वह तीन बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे. वह 6 भाषाओं का ज्ञान रखते हैं. खड़गे ने 13 मई 1968 को राधाबाई से शादी की और उनकी दो बेटियां और तीन बेटे हैं.

लगातार 9 बार विधायक बनने वाले 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे 50 साल से अधिक समय से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्हें गांधी-नेहरू का वफादार माना जाता है और हाल ही में उन्होंने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दिया है. मल्लिकार्जुन खड़गे महादलित समुदाय से आते हैं. अगर उनकी राजनीति की बात की जाए तो वह पहले केवल वकालत करते थे. कांग्रेस में शामिल होने से पहले खड़गे डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर से प्रेरित होकर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) में शामिल हुए थे.

हालांकि, खड़गे ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक छात्र संघ के नेता के रूप में की थी. सरकारी कॉलेज गुलबर्ग में उन्हें छात्रसंघ के महासचिव के रूप में चुना गया था. 1969 में वह एमएसके मिल्स कर्मचारी संघ के कानूनी सलाहकार बने थे. वह संयुक्त मजदूर संघ के एक प्रभावशाली श्रमिक संघ नेता भी थे और मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने.

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