यदुमनी सिदार
उप पुलिस अधीक्षक… एसडीओपी चांपा
मेरे पिता…
हर व्यक्ति के जीवन में पिता की विशिष्ट भूमिका होती है जो जीवन को दिशा देते है। इसलिए देवताओं ने भी माता पिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। मेरा सौभाग्य रहा कि मेरे पिता स्व. श्री बीजलाल जी सिदार आत्मज स्व. गनपत सिदार ने सीमित संसाधनों और असीम इच्छाशक्ति से ना केवल परिवार का पालनपोषण किया अपितु सदस्यों को श्रेष्ठ संस्कार दिए। अपने सम्पूर्ण 57 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने परिवार, समाज और अपने गांव कायतपाली के लिए आदर्श स्थापित किया।
*पारिवारिक पृष्ठभूमि*
मेरे दादा स्व. श्री गनपत सिदार किसान थे। स्वाभाविक रूप से मेरे पिता ने कृषि को संभाला। बड़े पिता भी इसमें सहयोगी थे। काफी समय तक परिवार की जीविका कृषि आधारित रही। धान प्रमुख फसल रही। कालांतर में चक्र बदला गया। मूगफली, उडद और अन्य अंतर्वर्ती फसल शामिल की गई। कृषि को उन्नत करने हमने अपने खेत मे सिंचाई साधनों की व्यवस्था कराई। नए संसाधन विकसित किये। इसने कृषि पैदावार बढ़ाई, ज्यादा लाभ दिए। हमारे जीवन स्तर पर भी इसका असर हुआ।
*शिक्षा पर फोकस*
उन दिनों हमारे गांव में विद्यालय था नही। लेकिन पढ़ने की ललक थी। इसलिए मेरे पिता ने 5 किमी दूर अंकोरी विद्यालय को चुना। 5वी कक्षा तक उन्होंने अकादमिक शिक्षा ली। फिर भी इसके बड़े मायने थे। हम 5 भाई और 2 बहन होते है। शिक्षा के प्रति मेरी ललक और अच्छे प्रदर्शन से पिता काफी प्रभावित थे। इसलिए उनकी इच्छा थी कि मैं कुछ खास कर दिखाऊँ। और, आज मैं जो कुछ हूं, उनके आशीर्वाद का प्रतिफल है छात्र जीवन में खेल के प्रति गहरी रुचि थी लम्बी कूद ,ऊँचीकूद ,खो खो ,कबड्डी में उस समय के प्रतिष्ठित खिलाड़ी और एथलेटिक्स थे उनके सहपाठी और देखने वाले आज भी चर्चायें करते है !
*सामूहिकता की भावना*
मुझे अभी भी याद है कि हमारे बचपन मे परिवार के बड़े मायने होते थे। सुबह चार बजे से खेत जाने या बैल गाड़ी लेकर घर बनाने के लिए गीधामुण्डा गाँव से पत्थर लेने जाते थे और हम लोगों के सोकर उठने के पहले लेकर आ जाते थे आज जो पुराना घर के नींव हैं मज़बूत बुनियाद खड़ी है इसके बाद नहाकर घर में स्थापित महादेव मंदिर में शंख बजाकर पूजापाठ करना प्रतिदिन का काम था उसके बाद सभी सदस्य अपने काम मे जुट जाते थे। नियत समय पर भोजन ,भजन और सामूहिक चर्चा का भी नियम था। यह विरासत का गुण था, जो जारी रहा। रात्रि भोजन के बाद पिताजी हम सभी से दैनिक गतिविधियों पढ़ाई लिखाई की जानकारी लेने के साथ मार्गदर्शन किया करते थे। उस समय भी सुझाव का चलन था। उनकी सोच थी कि सामूहिकता में बल होता है। इसलिए हमारे परिवार की कीर्ति बढ़ी।
*ईश्वर की सत्ता*
पुण्यभूमि भारत में जन्मे लोग ईश्वरीय शक्ति को स्वीकार करते है और उनके विधान को मानते भी है। इसलिए मेरे पिता इसके अनुगामी बने दादा स्व गनपत सिदार अपने जीवन काल में ग्राम को गुरु बनाकर अलेख निरंजन की दिक्षा लिए थे इसलिए भक्ति उनके स्वभाव में थी। वे खँजनी बजा कर गीत गाने में सिद्धहस्त थे। त्रिनाथ कथा के धार्मिक आयोजनों में शंख बजाने उनकी बहुत पूछपरख वर्तमान महासमुंद जिले और सीमावर्ती ओडिशा में भी थी।
*मेलजोल पर भरोसा*
निश्चित रूप से वह दौर विशेष था जब लोगों को हर किसी की चिंता हुआ करती थी। उनके प्रति लगाव भी गजब का होता था। मैंने देखा कि मेरे पिता ना केवल परिवार बल्कि गांव के लोगों के प्रति अत्यंत सहज थे। दयालुता का भाव उन्हें सबसे अलग बनाता था। वे सर्वस्पर्शी थे, इसलिए सबके चहेते भी थे। मिलनसार होने के कारण भरोसे की कसौटी पर खरे भी थे। उनका मानना था कि जिंदगी कुछ वर्षों की यात्रा से ज्यादा कुछ नही, इसलिए सबसे मिलजुल कर रहो, उनके हृदय में जगह बनाओ।
*अनंत यादें*
मै याद करता हूँ तो अतीत की यादें सामने आती हैं किसी चलचित्र की तरह। एक लंबा दौर , मेरे गांव कायतपाली का वो पुराना घर , वो गलियां और ढेर सारे लम्हें। हाँ, बाद में हमने गांव के घर को नया कलेवर भी दे दिया लेकिन जड़ें वही है। क्योंकि हम विरासत से जुड़े रहना चाहते हैं। मैं याद करता हूं कि मेरे छात्र जीवन मे पिताजी ने मेरे कौशल को सराहा था। वे मुझे अधिकारी बनते देखना चाहते थे।ईश्वर ने उनकी इच्छा पूरी भी की। गांव से पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनने वाला में पहला व्यक्ति था, ऐसे में पिता की खुशी स्वाभाविक थी किन्तु ज़्यादा दिन सेवा का मौक़ा नहीं मिल पाया 57 वर्ष की आयु में आप परलोक गमन कर गए। परिस्थितिजन्य कारणों से उनके अंतिम संस्कार में शामिल नही हो पाने की टीस आज भी है, और परेशान करती रहेगी।
*हमेशा यादें रहेंगी*
दोपहर भोजन करने के बाद ढेरा आँट्कर सन् ,पटसन् का रस्सी बनाना ,उड़िया पुराण का वाचन,बढ़ई काम जैसे हल ,बैल गाड़ी घरेलू फ़र्नीचर का काम स्वयं करते थे !
सच ही कहा गया है कि ब्रम्हांड की सबसे सुंदर रचना भारतभूमि है। परिवार में जन्म लेना अत्यंत सौभाग्य का विषय है। मै कहना चाहता हूं कि मंदिर और तीर्थ दर्शन के साथ अपने माता पिता की सेवा कर सुख प्राप्त किया जाए, क्योंकि ये अपनी संतानों के लिए वरदान ही है।
“ख़ास दोहे”
अक्सर चर्चा के दौरान कबीर के दोहे गुनगुनाते थे “करत करत अभ्यास के जनमति होत सुजान ,संगति में गुण आता है संगति में गुण जाता है ,तै कैसे उड़ागे रे मैना ए पिंजड़ा ला बैरी बना के कैसे उड़ागय,और उड़िया भाषा के भजन !
यदुमनी सिदार
उप पुलिस अधीक्षक… एसडीओपी चांपा