आखिर क्यों नहीं की जाती एक ही गोत्र में शादी, जानिए आखिर क्या है वजह

यूं तो गोत्र सभी जाति के लोगों का देखा जाता है किंतु ब्राह्मण परिवारों में प्रवर का बहुत अधिक महत्व है. पुराणों और स्मृति ग्रंथों के अनुसार यदि कोई कन्या सगोत्र हो किंतु प्रवर न हो तो ऐसी कन्या के विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

महर्षि विश्वामित्र, जनदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान गोत्र कहलाती हैं. अर्थात जिस व्यक्ति का गोत्र भरद्वाज है उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज और वह व्यक्ति इन ऋषि का वंशज है. आगे चल के गोत्र का संबंध धार्मिक परम्परा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा. ऋषियों की संख्या लाख करोड़ होने के कारण गोत्रों की संख्या भी लाख करोड़ मानी जाने लगी. लेकिन सामान्यतः आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गोत्र माने जाते हैं जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गोत्र बनाए गए. महाभारत के शांतिपर्व में मूल चार गोत्र बताए गए हैं जो अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृंगु हैं.

विवाह निश्चित करते समय गोत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी है, प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम पर होते हैं, हालांकि दोनों में अंतर यह है कि गोत्र का संबंध रक्त से होता है जबकि प्रवर का संबंध आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है. प्रवर की गणना गोत्रों के अंतर्गत की जाने से जाति में संगोत्र बहिर्विवाह की धारण प्रवरों के लिए भी लागू होने लगी. ब्राह्मणों में गौत्र प्रवर का बड़ा महत्व है. गौतम धर्म सूत्र में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है. यानी समान प्रवर या गोत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *