नवरात्रि पर मां दुर्गा के धरती पर आगमन का विशेष महत्व होता है। इस साल चैत्र नवरात्रि पर 30 साल के बाद सर्वार्थअमृत सिद्धि योग बनने जा रहा है, जो अत्यंत शुभकारी है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना करने से सभी कष्ट और दुखों से मुक्ति मिलती है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को देर रात 11 बजकर 55 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 9 अप्रैल को रात्रि 9 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान्य है। इसलिए 9 अप्रैल को घटस्थापना है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
घटस्थापना मुहूर्त – 06:12 से 10:23
अवधि – 04 घण्टे 11 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 12:03 पी एम से 12:53 पी एम
अवधि – 50 मिनट
नवरात्रि घटस्थापना पूजा सामग्री-
चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन कलश
सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज)
पवित्र स्थान की मिट्टी
गंगाजल
कलावा/मौली
आम या अशोक के पत्ते
छिलके/जटा वाला
नारियल
सुपारी अक्षत (कच्चा साबुत चावल), पुष्प और पुष्पमाला
लाल कपड़ा
मिठाई
सिंदूर
दूर्वा
नवरात्रि पूजन विधि– पूजा की सामग्री एकत्रित कर शारदीय नवरात्रि को स्नान करने के बाद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करके उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और कलश की स्थापना करें। कलश की स्थापना करने के बाद मां दुर्गा को लाल वस्त्र, लाल फूल, लाल फूलों की माला और श्रृंगार आदि की वस्तुएं अर्पित करें और धूप व दीप जलाएं। यह सभी वस्तुएं अर्पित करने के बाद गोबर के उपले से अज्ञारी करें। जिसमें घी, लौंग, बताशे, कपूर आदि चीजों की आहूति दें। इसके बाद नवरात्रि की कथा पढ़ें और मां दुर्गा की धूप व दीप से आरती उतारें और उन्हें प्रसाद का भोग लगाएं।
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा- अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री सौभाग्य की देवी हैं। उनकी पूजा से सभी सुख प्राप्त होते हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ, इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। मां को वृषारूढ़ा, उमा नाम से भी जाना जाता है। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है।
पूजा-विधि
इस दिन सुबह उठकर जल्गी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना भी की जाती है।
पूजा घर में कलश स्थापना के स्थान पर दीपक जलाएं।
अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।
मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। इस दिन मां को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पित करें।
मां को सफेद बर्फी का भोग लगाएं।
शैलपुत्री मां की आरती-
शैलपुत्री मां बैल सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस जा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रृद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।