रायपुर– छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमाओं पर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त ऑपरेशन छेड़ दिया है। इस ‘कागार ऑपरेशन’ में करीब 5 हजार जवान शामिल हैं। कार्रवाई का केंद्र नक्सलियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना माने जाने वाला कर्रेगुट्टा पहाड़ी क्षेत्र है, जहां हिड़मा, देवा, विकास जैसे टॉप कमांडरों सहित करीब 1000 से अधिक नक्सली छिपे होने की सूचना है।
शांति वार्ता की फिर गुहार, नक्सलियों का प्रेस नोट जारी
इस बड़े ऑपरेशन के बीच माओवादी संगठन की ओर से एक बार फिर शांति वार्ता की मांग की गई है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उत्तर-पश्चिम सब जोनल ब्यूरो के प्रभारी रूपेश द्वारा जारी प्रेस नोट में लिखा गया है कि ‘बस्तर में बंदूक के दम पर शांति नहीं लाई जा सकती’। रूपेश ने पत्र में सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ वार्ता की बात की जाती है और दूसरी ओर जंगलों में फोर्स तैनात कर दी जाती है।
वार्ता में बाधा बना ऑपरेशन?
रूपेश ने अपने पत्र में बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर चल रही संयुक्त कार्रवाई को वार्ता के अनुकूल माहौल को नुकसान पहुंचाने वाला करार दिया है। उन्होंने कागार ऑपरेशन का जिक्र करते हुए कहा कि जब नक्सली बेहद कमजोर स्थिति में हैं और राशन-पानी जैसी जरूरी चीजों की सप्लाई तक नहीं पहुंच पा रही है, तब वार्ता के बजाय घेराबंदी की जा रही है, जो सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
नक्सलियों की सेफ जोन में तगड़ी घेराबंदी
कर्रेगुट्टा पहाड़ी को नक्सलियों की बटालियन नंबर 1 से 5 का सबसे सुरक्षित इलाका माना जाता है। लेकिन अब यहां फोर्स के कई कैंप स्थापित हो चुके हैं, जिससे नक्सलियों की सप्लाई लाइन टूट गई है। यही वजह है कि ऑपरेशन को रणनीतिक रूप से ऐसे वक्त पर अंजाम दिया गया है जब नक्सली सबसे कमजोर स्थिति में हैं।
फोर्स की सख्त निगरानी, टॉप कमांडरों की तलाश
इस अभियान में सुरक्षा बलों का मुख्य फोकस टॉप नक्सली कमांडरों की घेराबंदी और गिरफ्तारी पर है। हिड़मा, देवा, विकास के साथ-साथ तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की सेंट्रल कमेटी, DKSZCM, DVCM और ACM जैसे बड़े कैडर यहां मौजूद बताए जा रहे हैं। वहीं, आईईडी से खतरे के मद्देनज़र अभियान को बेहद सतर्कता के साथ अंजाम दिया जा रहा है।
अब आगे क्या?
नक्सली संगठन की ओर से पत्र में यह साफ किया गया है कि वे सरकार के जवाब का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार वार्ता के प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाती है या इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने की दिशा में आगे बढ़ती है।