इतिहास लेखन में राजनीतिक और सांस्कृतिक सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए
रायपुर, 03 मार्च 2023
संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय रायपुर द्वारा छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय राजवंश पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का शुभारंभ महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर के सभागार में किया गया। आज तीन अकादमिक सत्र संपन्न हुए, जिसमें 12 शोध पत्र पढ़े गए और 6 व्याख्यान हुए। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा विभाग से प्रकाशित शोध संक्षेपिका और नव उत्खनित स्थल रीवा के उत्खनन प्रतिवेदन का विमोचन किया गया। शुभारंभ सत्र में आमंत्रित अतिथि पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा आधार वक्ता प्रोफेसर लक्ष्मी शंकर निगम, आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्र और प्रोफेसर ब्योमकेश त्रिपाठी वक्ता के रूप में उपस्थित थे।
प्रोफेसर ब्योमकेश त्रिपाठी ने संगोष्ठी में कहा कि क्षेत्रीय इतिहास लेखन के दौरान केवल राजनीतिक सीमाओं को ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक सीमाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए तभी इतिहास लेखन के न्याय हो पाएगा। आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्र ने अपने उद्बोधन में अध्येताओं और शोधार्थियों को शोध कार्य में ईमानदारी से कार्य करने और साथ ही पूर्ववर्ती विद्वानों के द्वारा किए गए कार्यों से अवगत होने का सुझाव दिया जिससे उनके द्वारा वर्तमान में किए जा रहे शोध कार्य प्रासंगिक बन सके।
प्रोफेसर लक्ष्मी शंकर निगम ने अपने आधार वक्तव्य में छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय राजवंशों के विषय में कालक्रमानुसार चर्चा करते हुए उनके इतिहास और पुरातत्व के अनुसंधान में आने वाली कठिनाइयों और इतिहास की विलुप्त कड़ियों को जोड़ने के लिए समुचित प्रयास किए जाने के संबंध में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय राजवंशों के इतिहास लेखन में उत्खनन से प्राप्त सामग्री जैसे अभिलेख, मुहर, मुद्राएं और अन्य पुरावस्तुओं को भी शामिल करते हुए उनके आधार पर इतिहास प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
संस्कृति सचिव श्री अन्बलगन पी ने क्षेत्रीय राजवंशों के अध्ययन के महत्व के बारे में बतलाते हुए छत्तीसगढ़ में इतिहास संग्रहालय बनाने के संबंध में शासन की योजना के बारे में चर्चा की। विभाग के संचालक श्री विवेक आचार्य ने शोध संगोष्ठी के उद्देश्य की संक्षिप्त जानकारी दी।
अकादमिक सत्रों की अध्यक्षता आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्र, प्रोफेसर ब्योमकेश त्रिपाठी और प्रोफेसर दिनेश नंदिनी परिहार ने की। सत्र संयोजन में बोधगया के डॉ. सचिन मंदिलवार, संबलपुर के डॉ. अतुल कुमार प्रधान और अमरकंटक के डॉ. देवेंद्र कुमार सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अकादमिक सत्रों की समाप्ति के बाद रायपुर के लोकरंजनी लोककला मंच सांस्कृतिक संस्था के डॉ. पुरुषोत्तम चंद्राकर और उनके साथियों ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी।