कई घरों में आज भी महिलाएं कद्दू नहीं काटती हैं. पहले घर का कोई पुरुष कद्दू को काटता है, उसके बाद ही महिला इसे काट सकती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इसका क्या कारण है और इसके पीछे क्या धार्मिक महत्व है. लोक मान्यताओं के अनुसार, कद्दू को बड़ा या ज्येष्ठ पुत्र माना जाता है. छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में विशेषकर आदिवासी समुदाय की महिलाएं तो आज भी कद्दू को नहीं काटती हैं. क्योंकि इसके पीछे मान्यता है कि, कद्दू को काटना बड़े बेटे की बलि देने के समान होता है. इसलिए कद्दू का व्यजंन बनाने से पहले पुरुष इसे काटते हैं, फिर महिलाएं इसके छोटे-छोटे टुकड़े काट सकती हैं. क्योंकि महिलाएं कद्दू को साबुत नहीं काट सकती.
ऐसा पौराणिक महत्व है कि, जहां पशुबलि नहीं दी जाती है, वहां कद्दू को पशु का प्रतीक मानकर बलि देने की परंपरा है. सनातन परंपरा के अनुसार, स्त्री सृजनकर्ता है ना कि संहराकर्ता. वह मां है जो जन्मदात्री है और जन्म देती है. इसलिए वह प्रतिकात्मक रूप से भी बलि नहीं दे सकती है. कद्दू ऐसी सब्जी है, जिसके पत्ते, फूल, फल और डालियों का इस्तेमाल भी व्यंजन तैयार करने के लिए किया जाता है. कद्दू से कई तरह के व्यंजन जैसे पकौड़े, सब्जी, सूप और सांभर आदि तैयार किए जाते हैं. कुम्हड़ा या कद्दू से जुड़ी इन्हीं तमाम विशेषताओं के कारण ही हर साल 29 सितंबर को विश्व कुम्हड़ा दिवस मनाया जाता है.