आदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। पूरा संसार कूष्मांडा ही है। पौराणिक आख्यानों में कूष्मांडा देवी ब्रह्मांड को पैदा करती हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। कूष्मांडा देवी की कल्पना एक गर्भवती स्त्री के रूप में की गई है अर्थात् जो गर्भस्थ होने के कारण भूमि से अलग नहीं है। इन देवी को ही तृष्णा और तृप्ति का कारण माना गया है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक पसंद है। इसलिए भी इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है।
यह है पूजा की संपूर्ण विधि
दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करें। फिर देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजमान देवी-देवताओं की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्मांडा की पूजा करें। पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र ‘सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।’ का ध्यान करें। इसके बाद शप्तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच और अंत में आरती करें। आरती करने के बाद देवी मां से क्षमा प्रार्थना करना न भूलें।
मां कूष्मांडा शप्तशती मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु
मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां कूष्मांडा का उपासना मंत्र
कुत्सित: कूष्मा
कूष्मा-त्रिविधतापयुत:
संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां
यस्या: सा कूष्मांडा