ओडिशा के नए मुख्यमंत्री मोहन माझी, कैसे बनाया राजनीति में इतना बड़ा मुकाम

ओडिशा में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बनने जा रहे मोहन चरण माझी एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। 52 वर्षीय माझी के पिता सुरक्षा गार्ड थे। उनका जन्म क्योंझर जिले के रायकला गांव में हुआ था। माझी ने क्योंझर में ही आरएसएस द्वारा संचालित स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर में एक शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन उन्होंने 1997 में वह राजनीति की तरफ मुड़ गए। वह तब जिले के रायकोला ग्रामपंचायत में सरपंच चुने गए। महज तीन साल बाद, उन्होंने क्योंझर सदर निर्वाचन क्षेत्र से जीतते हुए ओडिशा विधानसभा पहुंचे। क्योंझर आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीट है। 2004 में भी उन्होंने भाजपा के टिकट पर दोबारा इसी सीट से जीत हासिल की।
भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने और सीएम मनोनीत होने की घोषणा के तुरंत बाद उनकी पत्नी प्रियंका मरांडी ने कहा कि उन्हें कभी उम्मीद नहीं थी कि उनके पति मुख्यमंत्री बनेंगे। उन्होंने कहा, “मुझे पता था कि वे मंत्री बनेंगे। लेकिन मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे मुख्यमंत्री बनेंगे। यह उनके लिए बड़ी जिम्मेदारी है।”

माझी 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में हार गए थे। बावजूद इसके वह ओडिशा में आदिवासी समुदाय की अहम आवाज बने रहे। राज्य में 22 फीसदी आबादी आदिवासी समुदाय की है। माझी भी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरह संथाली हैं, जिसमें उच्च साक्षरता देखने को मिलती है। इसके साथ ही वह उन कुछ चुनिंदा आदिवासी नेताओं में हैं जो उच्च शिक्षित हैं। माझी एमए होने के अलावा कानून स्नातक भी हैं।माझी के करीबी सहयोगी मनोरंजन महंत ने कहा कि माझी हमेशा अपनी इमेज के बारे में चिंतित रहने वाले नेता हैं। वह हमेशा अनियमितताओं और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। हालांकि, वह विनम्र और मिलनसार हैं।महंत के मुताबिक, माझी अपने विधानसभा क्षेत्र के किसी भी गांव में सामाजिक समारोह में शामिल होना कभी नहीं भूलते।

माझी लौह अयस्क, मैंगनीज जैसे प्रमुख खनिजों और रेत, पत्थर के चिप्स और लेटराइट जैसे छोटे खनिजों की कथित लूट पर लगातार आवाज उठाते रहे हैं। पिछले साल, मिड-डे-मील योजना के लिए दालों की खरीद में 700 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाते हुए स्पीकर के पोडियम पर दाल फेंकने के लिए माझी को विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था। उनके सहयोगियों ने कहा कि भाजपा आदिवासी मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव के रूप में, माझी हमेशा पार्टी मंच पर आदिवासी मुद्दों की वकालत करते थे।

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