अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर इस साल 5 जून को बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में गए थे। उन्हें अंतरिक्ष स्टेशन पर सिर्फ 8 दिन रहना था। लेकिन, अंतरिक्ष यान में हीलियम रिसाव के कारण उनकी धरती पर वापसी बार-बार टल रही थी। दरअसल, बोइंग स्टारलाइनर में हीलियम रिसाव और थ्रस्टर में खराबी का पता चला था। अब सुनीता और विल्मोर को कम से कम 240 दिन अंतरिक्ष में बिताने होंगे। यानी उनकी वापसी फरवरी 2025 तक ही संभव हो सकेगी। हालांकि, सुनीता और उनकी सहयोगी के धरती पर लौटने का इंतजार लंबा हो सकता है। आइए विशेषज्ञों से समझते हैं कि क्या सुनीता विलियम्स और उनकी सहयोगी की जान को खतरा है? इतने दिन अंतरिक्ष में रहने से उनके शरीर में क्या बदलाव आ सकते हैं? अमेरिकी सरकार अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर इतनी बड़ी रकम खर्च करती है, जो कई छोटे देशों की विकास दर यानी जीडीपी के बराबर है। फिर भी वह सुनीता और उनकी सहयोगी को धरती पर लाने में नाकाम क्यों हो रही है?
अब दोनों यात्री स्पेसएक्स के अंतरिक्ष यान से 240 दिन बाद वापस लौटेंगे
हाल ही में नासा ने कहा कि जिस बोइंग स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान से दोनों यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) गए थे, वह अब बिना चालक दल के वापस लौटेगा। यानी अंतरिक्ष में 8 दिन बिताने वाले इन अंतरिक्ष यात्रियों को अब अंतरिक्ष की कक्षा में 8 महीने बिताने होंगे। पिछले दो महीने से अंतरिक्ष में फंसे नासा के दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन अंतरिक्ष यान से अगले साल फरवरी में धरती पर वापस लाया जाएगा। इस अतिरिक्त समय में स्पेसएक्स को अपना अगला अंतरिक्ष यान लॉन्च करने का समय मिल जाएगा, जिसकी उड़ान सितंबर के अंत में तय है। पहले इसमें चार अंतरिक्ष यात्री जाने वाले थे, लेकिन अब केवल दो यात्री ही अंतरिक्ष स्टेशन जाएंगे। इससे सुनीता और विल्मोर के लिए जगह बन जाएगी। फरवरी में जब यह अंतरिक्ष यान धरती पर वापस आएगा, तो वे दोनों भी इसमें बैठकर धरती पर आ जाएंगे।
8 महीने में सुनीता के शरीर में कितना बदलाव आएगा
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि 2022 में नेचर मैगजीन में कनाडा का एक शोध प्रकाशित हुआ था। ओटावा यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन में कहा गया था कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर की 50 प्रतिशत लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और मिशन जारी रहने तक ऐसा होता रहता है। यानी शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसे स्पेस एनीमिया कहते हैं। ये लाल कोशिकाएं पूरे शरीर को ऑक्सीजन की आपूर्ति करती हैं। यही कारण है कि चांद, मंगल या कहीं और अंतरिक्ष यात्रा करना एक बड़ी चुनौती है। हालांकि ऐसा क्यों होता है, यह अभी भी रहस्य है। इसके अलावा अंतरिक्ष में रहने के दौरान यात्रियों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डियों में कैल्शियम की कमी हो जाती है। धरती पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्री खुद को कमजोर और थका हुआ महसूस करते हैं।
1 सेकंड में अंतरिक्ष यात्री के शरीर की 30 लाख लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अंतरिक्ष में रहने के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में हर सेकंड 30 लाख लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। जबकि, ज़मीन पर यह गति मात्र दो लाख प्रति सेकंड है। हालांकि, किसी भी स्थिति में शरीर इस नुकसान की भरपाई कर लेता है, क्योंकि लाल रक्त कोशिकाएं उसी गति से बनती रहती हैं।