नई दिल्ली । रूस और यूक्रेन के बीच जिस तरह से हालात खराब हो रहे हैं उसको देखते हुए आने वाले दिनों में क्या कुछ देखने को मिलेगा इस बारे में कह पाना काफी मुश्किल हो गया है। हालांकि रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की शुरुआत करने वाले देश अब तक केवल रूस को धमकी देने तक ही सीमित हैं। इतना ही नहीं अमेरिका जो इस मामले में काफी आक्रामक बयानबाजी कर रहा था वो भी केवल वहीं तक सीमित है। इसके अलावा खुद यूक्रेन की ही बात करें तो वो नाटो फौज को लेकर भले ही खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा है लेकिन उसका भी रवैया अब तक काफी कुछ ऐसा ही रहा है।
बीते दो दिनों में इस मामले में जहां अमेरिका ने पौलेंड को टैंकों की बिक्री करने की घोषणा की है तो वहीं दूसरी तरफ नीदरलैंड ने हेलमेट समेत अन्य सैन्य साजो-सामान यूक्रेन को देने की बात की है। विभिन्न एजेंसियों की मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि यूक्रेन में रूस की तरफ से हमले जारी हैं। बहरहाल, इस तनाव में नाटो का नाम बार-बार सामने आता रहा है। नाटो इस तनाव की एक अहम कड़ी भी है। इसलिए इसके बारे में जानना जरूरी हो जाता है। आपको बता दें कि नाटो दुनिया के करीब 30 देशों का एक संगठन है जिसमें अधिकतर देश यूरोप के ही हैं। नाटो के पास अपनी वायु सेना, थल सेना, नौसेना तटरक्षक बल तक है। इसके तीन सदस्य ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस एक परमाणु हथियार वाले देश हैं।
नाटो सेना में सबसे बड़ी भूमिका अमेरिका की है। इसके करीब 13 लाख से अधिक जवान इस संगठन में अपनी सेवा दे रहे हैं। इसके अलावा दूसरे नंबर पर तुर्की (3.55 लाख से अधिक), तीसरे पर फ्रांस (दो लाख से अधिक, चौथे नंबर पर जर्मनी ( 1.78 लाख से अधिक), पांचवें नंबर पर इटली (1.75 लाख लगभग), छठे नंबर पर ब्रिटेन (1.46 लाख से अधिक), सातवें नंबर पर ग्रीस (1.41 लाख से अधिक) , आठवें नंबर स्पेन (1.21 लाख से अधिक), नौवें नंबर पर पौलेंड (1.05 लाख से अधिक) और रोमानिया (69 हजार से अधिक) है। संख्या के हिसाब से इस संगठन पर अमेरिका का प्रभुत्व है।