रायपुर- पंडित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज स्थित छत्तीसगढ़ के सिकल सेल संस्थान का नाम और काम बदलकर छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑफ़ ब्लड डिसऑर्डर कर दिया जाना उपयुक्त होगा। इसमें निजी अस्पतालों में लगभग 16 लाख का खर्च आता है लेकिन यहां 5 लाख में इसका इलाज हो जाएगा। इस संस्थान में अभी सारा फोकस सिकल सेल डिसऑर्डर पर है। जबकि छत्तीसगढ़ में थैलेसीमिया, हीमोफीलिया और एप्लास्टिक एनीमिया के मरीज भी पर्याप्त संख्या में हैं।
विशेषकर थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक है।
लेकिन अभी तक राज्य सरकार की किसी भी स्वास्थ्य योजनाओं में, इन मरीजों के इलाज संबंधी जरूरतों की पर्याप्त व्यवस्था कायम नहीं हो पाई है स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को इस सुझाव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि
सिकल सेल संस्थान( सिकल सेल इंस्टीट्यूट) को छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑफ़ ब्लड डिसऑर्डर के रूप में विकसित करके,
एक ही संस्थान के अंतर्गत, इन सभी रक्त जनित बीमारियों ( ब्लड डिसऑर्डर) का इलाज और नियंत्रण करने की दिशा में योजना बना कर उचित कदम उठाए जा सकें।
अभी यहां सिकलसेल संस्थान यहां है , जहां केवल मरीजों का इलाज हो रहा है , लेकिन रिसर्च नहीं हो रहा । इससे प्रारंभिक इलाज ही हो पा रहा है । संस्थान के बनने के बाद रिसर्च होगा व मरीजों की स्टडी की जा सकेगी । इसके अलावा स्टेमसेल थैरेपी से कैंसर के मरीजों का इलाज किया जा रहा है । स्टेमसेल से मलहम बनाया जा रहा है , जिसका उपयोग इलाज के लिए किया जा रहा है । रिसर्च सेंटर बनने के बाद काफी चीजें बदल जाएंगी । तब सिकलसेल के पहले स्टेज से लेकर लोगों में बीमारी का क्या ट्रेंड है , इस पर भी रिसर्च किया जा सकेगा ।