पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन शुरू हो चुका है. आज भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलेगी.
इसका समापन अगले दिन शाम 7 बजे होगा. पुरी की रथयात्रा अपनी शोभा और महिमा के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है. पूरे साल इस दिन का भक्तों को इंतजार रहता है. इसमें देश-विदेश के लोग पूरे उल्लास के साथ शामिल होते हैं.
पुरी के भगवान जगन्नाथ धाम को प्रसिद्ध चार धामों में गिना जाता है. हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है. आइये जानते हैं रथयात्रा से जुड़ी पांच अहम बातें, जो किसी को भी हैरान कर दे सकती हैं :
- भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं. इसे आमतौर पर 45 फीट ऊंचा रखा जाता है. रथ को बनाने के लिए विशेष प्रकार की लकड़ी यानी नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. उस लकड़ी का बकायदा जंगल में जाकर मत्रोच्चारण के साथ पूजन होता है, फिर सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ों को काटा जाता है. जिसके बाद कुल्हाड़ी को भगवान की प्रतिमा से स्पर्श कराया जाता है.
- रथयात्रा के लिए तीन नये रथ बनाये जाते हैं. एक रथ भगवान जगन्नाथ, दूसरा रथ बहन सुभद्रा और तीसरा रथ भाई बलभद्र के लिए बनाया जाता है. तीनों रथों को बनाने के लिए कुल 884 पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. सबसे खास बात ये है कि इन रथों को बनाने में कील या अन्य धातुओं का प्रयोग नहीं होता.
- रथों को तैयार करने के बाद रास्तों की सफाई की जाती है. यात्रा की पवित्रता के लिए ऐसा किया जाता है. लेकिन ये सफाई भी सामान्य किस्म की सफाई नहीं होती है. इस दौरान गजपति राजा की पालकी आती है. यह एक प्रकार का अनुष्ठान कहलाता है. इसे ‘छन पहनरा’ कहा जाता है. यात्रा से पहले तीनों रथों की पूजा की जाती है. और सोने की झाड़ू से रास्ते की सफाई की जाती है.
- रथयात्रा से एक पखवाड़ा पहले भगवान जगन्नाथ को बकायदा शाही स्नान कराया जाता है. इस शाही के बाद भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं. उन्हें विशेष कक्ष में विश्राम के लिए रखा जाता है. उनकी सेवा का ख्याल रखा जाता है लेकिन खास बात ये है कि ना तो मंदिर के पुजारी और ना ही वैध उनके पास जाते हैं. दो हफ्ते बाद भगवान स्वस्थ होकर बाहर आते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं.
- पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल पर मूर्ति बदले जाने की परंपरा है. जिस वक्त यहां मूर्ति बदली जाती है. उस वक्त बहुत ही कठिन विधि अपनाई जाती है. पुरानी मूर्ति को निकालकर नई मूर्ति स्थापित की जाती है. नई मूर्ति की स्थापना के समय वहां चारों तरफ अंधेरा कर दिया जाता है. कोई किसी को देख नहीं सकता. और जो पुजारी मूर्ति स्थापित करते हैं, उस वक्त उनकी आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है. इस प्रक्रिया को देखना अशुभ माना जाता है.