नई दिल्ली।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर मार्च में भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद न्यायिक क्षेत्र में उथल-पुथल मच गई थी। इस मामले ने न सिर्फ न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल खड़े किए, बल्कि इससे उच्च न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक नई बहस भी छिड़ गई। अब ताजा developments के मुताबिक, जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की तलवार लटक रही है।
तीन सदस्यीय कमेटी ने ठहराया दोषी
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी। कमेटी की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा की भूमिका को “अनुचित और न्यायिक आचरण के प्रतिकूल” बताया गया है। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने उन्हें स्वेच्छा से इस्तीफा देने का विकल्प दिया, लेकिन जस्टिस वर्मा ने इससे इनकार कर दिया।
अब महाभियोग ही अंतिम विकल्प
जस्टिस वर्मा के इस्तीफा न देने के बाद अब उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस संबंध में रिपोर्ट को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेज दिया है। सूत्रों के अनुसार, इस विषय पर जल्द ही केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हो सकती है, जहां महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है।
संविधान के अनुसार क्या है प्रक्रिया?
महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत संचालित होती है। राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव तभी लाया जा सकता है जब कम से कम 50 सांसद इसका समर्थन करें। लोकसभा में यह संख्या 100 सांसदों की है। प्रस्ताव पास होने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जरूरी होता है।
चूंकि संसद के दोनों सदनों में सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है, इसलिए यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति बनी रहती है तो इस प्रस्ताव को पारित कराना कठिन नहीं होगा। माना जा रहा है कि मॉनसून सत्र से पहले ही यह प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
न्यायपालिका की साख दांव पर
यह प्रकरण भारत की न्यायिक व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे समय में जब न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता की अपेक्षा चरम पर है, इस तरह की घटनाएं पूरे संस्थान की साख को प्रभावित कर सकती हैं।